Saturday, October 14, 2017

बछ बारस गोवत्स द्वादशी व्रत पूजा विधि


बछ बारस को गौवत्स द्वादशी और बच्छ दुआ  भी कहते हैं। बछ बारस भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। बछ यानि बछड़ा, गाय के छोटे बच्चे को कहते है इस दिन को मनाने का उद्देश्य गाय बछड़े का महत्त्व समझाना है। यह दिन गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। गोवत्स का मतलब भी गाय का बच्चा ही होता है।

बछ बारस का यह दिन कृष्ण जन्माष्टमी के चार दिन बाद आता है कृष्ण भगवान को गाय बछड़ा बहुत प्रिय थे तथा गाय में सैकड़ो देवताओं का वास माना जाता है। गाय बछड़े की पूजा करने से कृष्ण भगवान का , गाय में निवास करने वाले देवताओं का और गाय का आशीर्वाद मिलता है जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है ऐसा माना जाता है।

इस दिन महिलायें बछ बारस का व्रत रखती है। यह व्रत सुहागन महिलाएं सुपुत्र प्राप्ति और पुत्र की मंगल कामना के लिए परिवार की खुशहाली के लिए करती है। गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है। इस दिन गाय का दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही , मक्खन , घी आदि का उपयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा गेहूँ और चावल तथा इनसे बने सामान नहीं खाये जाते

भोजन में चाकू से कटी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करते है। इस दिन अंकुरित अनाज जैसे चना , मोठ , मूंग , मटर आदि का उपयोग किया जाता है। भोजन में बेसन से बने आहार जैसे कढ़ी , पकोड़ी , भजिये आदि तथा मक्के , बाजरे ,ज्वार आदि की रोटी तथा बेसन से बनी मिठाई का उपयोग किया जाता है।

बछ बारस के व्रत का उद्यापन करते समय इसी प्रकार का भोजन बनाना चाहिए। उजरने में यानि उद्यापन में बारह स्त्रियां , दो चाँद सूरज की और एक साठिया इन सबको यही भोजन कराया जाता है।


शास्त्रो के अनुसार इस दिन गाय की सेवा करने से , उसे हरा चारा खिलाने से परिवार में महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा परिवार में अकालमृत्यु की सम्भावना समाप्त होती है।

Wednesday, October 11, 2017

कर्ण अर्जुन का युद्ध



महाभारत का युद्ध अपनी चरम सीमा पर था और कौरवों की ओर से कर्ण सेनापति था | कौरवों और पांड्वो के बीच भीषण युद्ध चल रहा था हर तरफ मारकाट हो हो रही थी | कौरवो की ओर से कर्ण और पांडवों की और से अर्जुन एक दूसरे से युद्ध कर रहे थे | कभी अर्जुन का पलड़ा भारी पड़ता तो कभी कर्ण का पलड़ा भारी होता | अचानक अर्जुन ने अपनी धनुष विद्या का प्रयोग कर कर्ण को पस्त कर दिया |कर्ण लगभग लगभग धराशायी सा हो गया | हालाँकि वह भी एक नंबर का तीरंदाज़ था लेकिन अर्जुन के आगे उसका टिक पाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा था | तभी एक जहरीला और और डरावना सर्प कर्ण के तरकश में तीर के आकार में बदल कर  घुस गया तो कर्ण ने जब तरकश में से बाण निकालना चाहा तो उसे उसका स्पर्श कुछ अजीब सा लगा कर्ण ने सर्प को पहचान कर उस से कहा कि तुम मेरे तरकश में केसे घुसे तो इस पर सर्प ने कहा तो कि ‘ हे कर्ण अर्जुन के खांडव वन में आग लगाई थी और उसमे मेरी माता जल गयी थी तभी से मेरे मन में अर्जुन के प्रति बदले की भावना है’ इसलिए तुम मुझे बाण के रूप में अर्जुन पर चला दे और मैं उसे जाते ही डस लूँगा जिस से मेरा बदला पूरी हो जायेगा क्योंकि अर्जुन की मौत हो जाएगी और दुनिया तुम्हे विजयी कहेगी |

सर्प की बात सुनकर कर्ण ने सहजता से कहा कि ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि ये नैतिक नहीं है और हे सर्पराज अर्जुन ने अवश्य जब खांडव वन में आग लगाई लेकिन निश्चित ही अर्जुन का ये उद्देश्य नहीं था और मैं इसमें अर्जुन को इसमें दोषी नहीं मानता क्योंकि उस से ये अनजाने में ही हो गया होगा और दूसरा अनेतिक तरीके से विजय प्राप्त करना मेरे संस्कारों में नहीं है इसलिए मैं ऐसा अनेतिक काम नहीं करूँगा अगर मुझे अर्जुन को हराना है तो मैं उसे नेतिक तरीके से हराऊंगा इसलिए हे सर्पराज आप वापिस लौट जाएँ और अर्जुन को कोई भी नुकसान न पहुंचाए | कर्ण की नेतिकता देखकर सर्प का मन बदल गया और वह बोला कि हे कर्ण तुम्हारी दानशीलता और नेतिकता की मिसाल युगों युगों तक दी जाती रहेगी | सर्प वंहा से उड़ गया और कर्ण को अपने प्राण गंवाने पड़े |