Friday, July 7, 2017

क्या है गुरु पूर्णिमा का महत्व, कैसे हुई इसकी शुरुआत ||

मंत्र :- 

गुरुः ब्रह्मा : गुरु ही हैं ।
गुरुर विष्णु : गुरु ही विष्णु हैं ।
गुरुर देवो महेश्वरः : गुरु ही महेश्वर यानि शिव हैं ।
गुरु साक्षात परब्रह्म : परब्रह्म, जोकि श्रिष्टि रचयिता हैं और सभी देवो में श्रेष्ठ हैं, गुरु उनके समान हैं ।
तस्मै श्री गुरुवे नमः : हम उन गुरु को हमारा नमन है ।


गुरू-पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है जो गुरुओं के सम्मान के लिए है। यह महान पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। कहते हैं जैसे सूर्य की गर्मी से तपती भूमि को बारिश से शीतलता और फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरु गुरु मानव को अज्ञानता के अंधेरे से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है आैर भविष्य संवारता है इसलिए उनके सम्मान में ही आषाढ़ मास पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है।

क्या है मान्यता :- 
हिंदू धर्म में गुरू-पूर्णिमा का विशेष महत्व है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के अवतार वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। इन्होंने महाभारत आदि कई महान ग्रंथों की रचना की। कौरव, पाण्डव आदि सभी इन्हें गुरु मानते थे इसलिए आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा व व्यास पूर्णिमा कहा जाता है।

ऐसे शुरु हुआ सम्मान :- 
प्राचीन काल में जब बच्चे गुरुकुल या गुरु के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाते थे। उस समय बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती थी। विद्या अध्ययन के बदले शिष्य गुरु पूर्णिमा के दिन वे श्रद्धाभाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करते थे। कहते हैं जिस प्रकार आषाढ़ की घटा बिना भेदभाव के सब पर जलवृष्टि कर जन-जन का ताप हरती है, उसी प्रकार विश्व के सभी गुरु अपने शिष्यों पर इस पावन दिन में आशीर्वाद की वर्षा करते हैं।

इस दिन का विशेष महत्व :-
आषाढ़ की पूर्णिमा के दो प्रभाग हैं। पहला यह कि यह पूर्णिमा सबसे बड़ी मानी जाती है। इस में चंद्र की कला तथा ग्रह-नक्षत्र विशेष संयोग लिए होते हैं। दूसरा यह कि इस दिन से श्रावण मास की शुरुआत होती है। शास्त्र में इस दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि आषाढ़ी पूर्णिमा अवंतिका में अष्ट महाभैरव की पूजन परंपरा से भी जुड़ी है। इस दिन गुरुओं के चरणों के पूजन का भी विधान है। गुरु पद पूजन परंपरा का निर्वाह इसलिए करते है, ताकि बच्चों में बुद्धि वृद्धि हो।

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