Friday, July 28, 2017

शनिदेव पर क्यों चढ़ाया जाता है तिल का तेल?


सभी नौ ग्रहों में शनिदेव का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है। इस वजह से शनि ही हमारे कर्मों का शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं। जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं, ठीक वैसे ही फल शनि प्रदान करते हैं। शनिदेव न्याय, श्रम और प्रजा के देवता हैं। यदि किसी व्यक्ति के कर्म पवित्र हैं तो शनि सुख-समृद्ध जीवन प्रदान करते हैं। गरीब और असहाय लोगों पर शनि की विशेष कृपा रहती है। जो लोग किसी गरीब को परेशान करते हैं, उन्हें शनि के कोप का सामना करना पड़ता है। शनि पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। वायु इनका तत्व है। साथ ही शनि व्यक्ति के शारीरिक बल को भी प्रभावित करता है।

लोग हर शनिवार मंदिर में शनिदेव की मूर्ति पर तिल के तेल को अर्पित करते देखे जा सकते हैं। अधिकांश लोग इस कर्म को शनि की कृपा प्राप्त करने की प्राचीन परंपरा मानते हैं। वास्तविकता में इस परंपरा के पीछे धार्मिक और ज्योतिषी महत्व है। धार्मिक मतानुसार तिलहन अर्थात तिल भगवान विष्णु के शरीर का मैल हैं तथा इससे बने हुए तेल को सर्वदा पवित्र माना जाता है।

तिल के तेल चढ़ाने का धार्मिक महत्व: शास्त्र आंनद रामायण के अनुसार हनुमान जी पर जब शनि की दशा प्रांरभ हुई उस समय समुद्र पर रामसेतु बांधने का कार्य चल रहा था। राक्षस पुल को हानि न पहुंचाए, यह आंशका सदैव बनी हुई थी। पुल की सुरक्षा का दायित्‍व हनुमान जी को सौपा गया था। शनिदेव हनुमान जी के बल और कीर्ति को जानते थे। उन्‍हानें पवनपुत्र को शरीर पर ग्रहचाल की व्‍यवस्‍था के नियम को बताते हुए अपना आशय बताया।

हनुमान जी ने कहां कि वे प्रकृति के नियम का उल्‍लघंन नहीं करना चाहते लेकिन राम-सेवा उनके लिए सर्वोपरि हैं। उनका आशय था कि राम-काज होने के बाद ही शनिदेव को अपना पूरा शरीर समर्पित कर देंगे परंतु शनिदेव ने हनुमान जी का आग्रह नहीं माना।

वे अरूप होकर जैसे ही हनुमान जी के शरीर पर आरूढ़ हुए, हनुमान जी ने विशाल पर्वतों से टकराना शुरू कर दिया। शनिदेव शरीर पर जिस अंग पर आरूढ़ होते, महाबली हनुमान जी उसे ही कठोर पर्वत शिलाओं से टकराते। फलस्‍वरूप शनिदेव बुरी तरह घायल हो गए। उनके शरीर पर एक-एक अंग आहत हो गया। शनिदेव जी ने हनुमान जी से अपने किए की क्षमा मांगी। हनुमान जी ने शनिदेव से वचन लिया कि वे उनके भक्तों को कभी कष्‍ट नहीं पहुंचाएगें। आश्‍वस्‍त होने के बाद रामभक्‍त अंजनीपुत्र ने कृपा करते हुए शनिदेव को तिल का तेल दिया, जिसे लगाते ही उनकी पीड़ा शांत हो गई। तब से शनिदेव को प्रसन्‍न करने के लिए उन पर तिल के तले से अभिषेक किया जाता हैं।

तिल के तेल चढ़ाने का ज्योतिषीय महत्व: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि की धातु सीसा है। इसे संस्‍कृत भाषा में नाग धातु भी कहते हैं। इसी धातु से सिंदूर का निर्माण होता हैं। सीसा धातु विष भी हैं। तंत्र शास्‍त्र में इसके विभिन्‍न प्रयोगों की विस्‍तार से चर्चा की गई है। सिंदूर पर मंगल का अधिपत्य होता है। लोहा पृथ्वी के गर्भ से निकलता है और मंगल ग्रह देवी पृथ्वी के पुत्र माने जाते हैं अतः लोहा मंगल ग्रह की धातु है। तेल को स्‍नेह भी कहा गया है। यह लोहे को सुरक्षित रखता है। लोहे पर यह जंग नहीं लगने देता और यदि लगा हुआ हो तो उसे साफ कर देता है। मंगल प्रबल हो तो शनि का दुष्‍प्रभाव खत्‍म हो जाता है। इसे शनि को शांत करने का सरल उपाय कहा गया हैं। तिल का तेल चढाने का अर्थ हैं समर्पण।

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